छुपाये छुपेगी नही आशिक़ों तुम्हारी दिल्लगी। इश्क़ का इतिहास है सबका लिखा जाएगा।।
Saturday, 16 October 2021
Sunday, 19 September 2021
Friday, 3 September 2021
संसद अवारा
अगर सड़कें खामोश हो जांए
तो संसद आवारा हो जाएगी।
लोहिया जी का कथन सत्य साबित हुआ है और हो भी क्यू न क्योंकि आज की जो पढ़ी लिखी पीढ़ी है वो विभिन्न पार्टियों की विचारधारा में डॉक्टरेट की उपाधि लिए हुए हैं उनको राष्ट्रवाद के नाम पर अपने प्रमुख नेता के विचार और पड़ोसी देश की बुराई पता है बस और थोड़ा भावुक हुए तो अपनी ऑर्मी के प्रति नतमस्तक होते है और होना भी चाहिए।
लेकिन अगर आप इनमे से किसी एक के ऊपर भी प्रश्न चिन्ह लगाना चाहते हैं तो बहुत सोच समझ के क्योंकि आपको तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा।
रही बात संसद की आवारगी की तो सड़क पर उतरे कौन युवा तो ख़ुद संसद में बैठी सत्ताधारी पार्टी के विचारों के गुलाम बन गए हैं। और जो विपक्षी पार्टियाँ इस काम को अंजाम दे सकती थी वो खुद इस दौर से गुजर चुकी होती है या गुजरने वाली होती हैं । तो वो एक सधे कदम से आगे बढ़ती है क्योंकि उन्हें पता है कि कल हमे भी इसी जनता को मूर्ख बनाना है तो थोड़े बहुत उठापटक के साथ राजा और दरबार की प्रजा मिश्री खाते रहते है और एक दूसरे को अनचाहे ही बताते हैं की आज संसद को तुम निक्कमा और आवारा बनाओ कल हम इसी परम्परा को आगे बढ़ाएंगे।
और कोई इन सबसे आगे की सोच के सड़को पर आया भी तो उसके लिए देशद्रोही का टैग तैयार रहता है और जैसे ही आवाज बुलंद करने की कोशिश करता है देशद्रोही नामक छूरे से ज़बान कतर दी जाती है
धन्यवाद
राहुल यदुवंशी अंकित
केंद्रीय विश्वविद्यालय इलहाबाद
Friday, 13 August 2021
इश्क़ और सत्ता
इलाज चलता रहा इश्क़ का हाकिम थे बड़े शहर में।
नब्ज़ टटोलते रहे की मौतों का काफ़िला निकल पड़ा।।
कुछ जले कुछ दबे कुछ को निग़ल गए अफ़सरान।
लाशों की ख़ातिर कितनो की लम्बी लगी थी कतार।।
हर शख्स दिया वोट लेकर उम्मीदों की बाजार।
लम्पटों से नई अस्पतालों का करता रहा इंतजार।।
कतरा कतरा बेच कर भी थकता न ये शैतान।
इक सत्ता की खातिर हिन्द का खून भी किया कुर्बान।।
राहुल यदुवंशी अंकित
Tuesday, 25 August 2020
प्रवासी मजदूर
मगर दिन ढला नही होगा
देखना तो होगा ही तुम्हें कैसे
तो सड़को पर जाओ
मजदूरों के पैरों का लहू
अभी सड़को पर से सूखा नही होगा।।
राहुल यदुवंशी अंकित
Thursday, 28 November 2019
मेरा शहर
हर राज हर जख्म को छुपाये बैठे हैं।
जिंदगी तेरे लिए शहर का कोना -कोना सजाये बैठे है।
दस्तक तू दे जा कभी मेरे भी दरवाजे पर।
जिंदगी तेरे लिए शहर का कोना -कोना सजाये बैठे है।
दस्तक तू दे जा कभी मेरे भी दरवाजे पर।
हम हाथो में मेहंदी तेरे नाम की लगाये बैठे हैं।।
Rahul yaduvanshi Ankit
Wednesday, 21 August 2019
मेरा शहर
इक दरिया है जो पार करके जाना था
मुझे मीनारों के उस पार जाना था
कोई छू ना सके मेरी उस अनोखी सी मंज़िल को
उसे बनाने मुझे समन्दर पार जो जाना था
Rahul yaduvanshi Ankit
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