Sunday, 25 November 2018

मेरा शहर


कुछ अन्धे हैं कुछ बहरे हैं कुछ गये हैं खूब बौराय।

तानाशाही रोटी खाकर कर रहे हैं खूब अत्याचार।

इ. वि. वि. की राजनीती में से नीती गयी हेराय।

कुछ काने सेवक बन ,कर रहे हैं खूब राज।

तानाशाही की कई मिशालें जली हुई हैं यार।

उनमे से इक नई निष्कासन है मेरे लाल।

मत करना आवाज बुलंद हो जाओगे बेकार।

तुम्हारी एक छोटी सी चीख भी बना देगी तुमको भंगार।

कुछ अन्धे हैं कुछ बहरे हैं कुछ गये हैं खूब बौराय।

कुछ तो इस्तीफा दे - दे कर भी शासन रहे चलाय।

हरियर क्रांति के दूत थे उनको दिए भगाय।

हम तो सोचे थे एक - दो पर यहाँ तो कुल गए हैं बौराय।

                                                राहुल यदुवंशी अंकित